गिरीश पंकज, वरिष्ठ साहित्यकार एवं पत्रकार
तकनीकी दृष्टि से हमारा राष्ट्र जैसे-जैसे आगे बढ़ रहा है, यहां के एक तथाकथित आधुनिक और समृद्ध वर्ग ने विदेशी नस्ल के कुत्तों से ज्यादा प्यार करना शुरू कर दिया है. ये लोग कुत्ते के साथ सगर्व घूमते हैं और गौ माता नाम पर मुँह बिचकाते हैं. इस देश में अब गाय उपेक्षा का विषय है. गाय की बात करना कुछ को पिछड़ापन लगता है. यही इस देश का बहुत बड़ा दुर्भाग्य है. जिस सनातन राष्ट्र की बात हम करते रहे हैं, उसी सनातन राष्ट्र में कभी दूध-घी की नदियाँ बहा करती थीं. हमने यह बात बुजुर्गों के मुंह से सुनी होगी. लेकिन अब हालत यह है गाय के खून की नदियां बह रही हैं.इसे देखना-समझना हो तो किसी कसाई खाने के पास से गुजरें,तब आपको मेरी इन पंक्तियों पर भरोसा हो जाएगा. हमारी बुद्धिहीनता की हद तो यह है कि हम कसाई खाने को भी अवैध और अवैध रूप में देखते हैं. मैं कई बार खींझभरी हँसी के साथ कहता भी हूं कि कसाई खाने के मामले में क्या अवैध और क्या वैध. क्या किसी कसाईखाने को लाइसेंस दे दिया गया, तो वह वैध कसाईखाना हो गया? क्या वहां अब पशुधन की हत्या नहीं होगी? बिल्कुल होगी. इसलिए वैध-अवैध का सवाल ही कहां होता है. भारत जैसे देश में कसाई खाने का कोई आवश्यकता ही नहीं है. इन्हें फ़ौरन बंद करना चाहिए. अंग्रेजों के आने के बाद से ही इस देश में कसाई खाने खुलने शुरू हुए. जबकि मुगल काल में एक भी कसाई खाने नहीं थे. कई बादशाहों ने तो गौ हत्या पर प्रतिबंध भी लगा रखा था. भले ही वे दूसरे किस्म के अत्याचार करते रहे, लेकिन गाय के प्रति वे क्रूर नहीं थे. इसके अनेक प्रमाण हैं. बाबर ने तो अपने पुत्र हुमायूं को पत्र लिखकर गायों के संरक्षण की बात की थी.
दुर्भाग्य की बात यह है कि अनेक राज्यों में आज भी कसाई खाने धड़ल्ले से चल रहे हैं और सनातन का ढोल पीटने वाली सरकार कोई कार्रवाई नहीं करतीं. यह भी शर्मनाक बात है कि भारत से अन्य देशों के लिए गौ मांस का निर्यात बढ़ता जा रहा है. आज देश में और कुछ राज्यों में भी भारतीय जनता पार्टी की सरकार है, जो हमेशा सनातन की बात करती है. उसके रहते हुए भी अगर गौ मांस का निर्यात हो रहा है, तो इससे बड़ी विसंगति की बात दूसरी नहीं हो सकती. वैसे यह संतोष की बात है कि इस देश में अनेक धर्माचार्य गौ हत्या को लेकर चिंता व्यक्त करते हैं और अपने प्रवचनों में गौ माता को राष्ट्र माता बनाने की मांग भी उठाते रहते हैं. महाराष्ट्र सरकार का निर्णय स्वागतेय है कि उसने गौ माता को राज्य माता घोषित कर दिया है. पिछले दिनों ज्योतिष पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती जी ने गौ माता को राष्ट्रमाता घोषित करने की पुरजोर मांग की. उनकी इस मांग लेकर सभी शंकराचार्य एकमत हैं. इस पवित्र मांग को लेकरअविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती जी गो-प्रतिष्ठा आंदोलन भी चला रहे हैं. उनकी गौ ध्वज स्थापना भारत-यात्रा जारी है. अपने सोलहवें पड़ाव में वह पिछले दिनों रायपुर पधारे थे. उनकी यह यात्रा छत्तीस राज्यों में जाएगी. उम्मीद की जानी चाहिए कि इस यात्रा का सकारात्मक असर होगा. उनका नारा है, ‘ गौ माता राष्ट्र माता :राष्ट्र माता भारत माता’. उन्होंने भारत की देसी गाय को एक सुंदर नाम भी दिया है. उन्होंने इसे ‘रामा गाय’ कहा. इसमें तीन अर्थ छुपे हुए. रा का राज्य और राष्ट्र भी. रा से भगवान राम भी. रामा का एक अर्थ माता सीता भी है. भाव यही है कि रामा गाय मतलब राष्ट्र और राज्य की माता. उन्होंने देसी गाय के लिए रामा गाय शब्द का प्रयोग किया है. यह ठीक भी है. रामा गाय बोलते ही हमें देसी गाय का बोध होगा होगा और जर्सी गाय बोलते ही विदेशी नस्ल की गाय का. वह गाय जो सूअर के जींस से विकसित की गई है. जिसमें वैसी कोई खासियत यानी गुणवत्ता नहीं, जैसी किसी भी देसी गाय में होती है.
अपने रायपुर प्रवास के दौरान शंकराचार्य विशाल जनसमूह को संबोधित करते हुए कहा कि देश की जनता असली सरकार है. मैं जनता को जाग्रत करने के लिए निकला हूं. उन्होंने दो टूक कहा कि जनता अपने जनप्रतिनिधियों से साफ-साफ कहे कि जब भी शपथ ग्रहण करें तो गो हत्या बंद करके गाय को राष्ट्र माता घोषित करने का वचन दें. लोग उनसे शपथ पत्र भरवाएं कि गौ हत्या नहीं करेंगे और न किसी को करने देंगे. उन्होंने इस बात पर गहरा दुख व्यक्त किया कि अगर किसी राज्य में गौ हत्या पर प्रतिबंध है, तो गौ हत्यारे दूसरे राज्यों में गायों को ले जाकर वहां काटते हैं. आजकल ‘एक राज्य एक चुनाव’ की बात होती है, तो गौ माता के लिए पूरे देश में एक समान कानून क्यों नहीं बनता कि किसी भी राज्य में गौ हत्या नहीं होगी. उन्होंने छत्तीसगढ़ के लोगों से भी अनुरोध किया कि गाय को महतारी के रूप में प्यार करें और गौ तस्करी को रोकें. इसमें दो राय नहीं कि इस समय छत्तीसगढ़ से बड़ी संख्या में गौ तस्करी हो रही है. छत्तीसगढ़ सरकार ने राज्य की गायों को कौशल्या नाम दिया है. उन्होंने छत्तीसगढ़ सरकार से भी मांग की महाराष्ट्र की तरह यहां भी गाय को राज्य माता घोषित किया जाए. लेकिन अभी तक सरकार ने इस दिशा में कोई घोषणा नहीं की है.
लेखक के उपन्यास एक गाय की आत्मकथा को पढ़कर गौ के प्रति बढ़ा प्रेम
देसी गायों की प्रतिष्ठा के लिए इन पंक्तियों के लेखक ने एक उपन्यास भी लिखा ‘एक गाय की आत्मकथा’. गौ गीतों का एक संग्रह भी है ‘गौ वंदन’ नाम से, जिसमें तीन दर्जन गीत संग्रहित हैं. जो समय-समय पर गौ माता पर लेख लिखते रहते हैं. मेरे उपन्यास को पढ़कर मोहम्मद फैज नामक एक मुस्लिम युवक देश भर में घूम-घूम कर गौ कथा कहता है. यह कैसी विडंबना है कि अनेक हिन्दू गौ विरोधी आचरण कर रहे हैं, वही एक मुस्लिम युवक गौ को अपना प्यार लुटा रहा है. ऐसे अनेक मुस्लिम भी हैं, जो गौ सेवा के कार्य में लगे हुए हैं. मेरे उपन्यास में मुज़फ्फर अली नामक युवक गौ जागरण का कार्य करता है. और इस नाम के एक सज्जन ईमानदारी से गौ सेवा के पावन कार्य में लगे हुए हैं. अब समय आ गया है कि घर-घर जाकर गौ प्रेमी लोग घर-घर जाएँ और ‘रामा’ गाय यानी देसी गाय को बचाने का अभियान चलाएं. आज सामान्य नागरिक देसी गाय और जर्सी गाय में बहुत अधिक अंतर नहीं कर पाता. दोनों के बीच का अंतर भी समझाने का अभियान चलना चाहिए.
More Stories
परमार्थ निकेतन और महावीर सेवा सदन की उत्कृष्ट पहल ’’दिव्यांगता मुक्त भारत’’
भारत की रचनात्मक अर्थव्यवस्था: नवाचार को बढ़ावा और भविष्य को आकार देना
पीएम के प्रधान सचिव डॉ. पीके मिश्रा ने डॉ. बिबेक देबरॉय को याद किया