mediavani.com

समाचार। विचार। आलेख। अध्यात्म।

World Brain Day chidanand sarswati

विश्व मस्तिष्क दिवस: विचार, विवेक और चेतना का केंद्र है मस्तिष्क

  • चेतना, शांति और संतुलन का समन्वय
  • ध्यान, प्रार्थना, सेवा और संयम ये मस्तिष्क की सर्वोत्तम औषधियाँ:स्वामी चिदानन्द सरस्वती

ऋषिकेश। आज विश्व मस्तिष्क दिवस के अवसर पर परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि मस्तिष्क स्वास्थ्य केवल चिकित्सा का विषय नहीं, बल्कि यह जीवन की दिशा और दृष्टि का विषय है।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि मस्तिष्क केवल एक अंग नहीं, बल्कि वह शक्ति है जो निर्णय, अनुभूति, स्मृति और आत्म-चेतना को जन्म देती है। दुर्भाग्यवश, आज की भागदौड़ और तकनीक-प्रधान जीवनशैली के कारण मस्तिष्क संबंधित समस्याएं जैसे स्ट्रोक, डिमेंशिया, माइग्रेन, अवसाद, पार्किंसन आदि तेजी से बढ़ रही हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, दुनिया में हर तीन में से एक व्यक्ति को अपने जीवन में किसी न किसी न्यूरोलॉजिकल समस्या का सामना करना पड़ता है।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि सनातन संस्कृति हमें सिखाती है कि मस्तिष्क की रक्षा केवल औषधियों से नहीं, बल्कि चेतना, अनुशासन और अध्यात्म से संभव है। जो उपाय आज का विज्ञान मस्तिष्क स्वास्थ्य के लिए सुझा रहा है, वे हजारों वर्षों से हमारे वेदों, उपनिषदों और योग-दर्शन में सम्मिलित हैं। मंत्र ध्वनि की शक्ति जो मस्तिष्क को ऊर्जा, स्थिरता और आंतरिक शांति प्रदान करती है। योग, शरीर, प्राण और मन का संतुलन है, जो मस्तिष्क की कोशिकाओं को सक्रिय करता है। ध्यान, चित्त की एकाग्रता प्रदान करता है, जिससे मस्तिष्क की तरंगें संतुलित होती हैं और निर्णय क्षमता बढ़ती है और प्राकृतिक जीवनशैली, ऋतुचक्र आधारित दिनचर्या, तनाव को कम करती है और मानसिक संतुलन लाती है।
स्वामी जी ने कहा कि आज की युवा पीढ़ी मोबाइल, इंटरनेट और सोशल मीडिया के अत्यधिक उपयोग से मानसिक रूप से अत्यधिक प्रभावित हो रही है। कम उम्र में डिप्रेशन, घबराहट और आत्महत्या जैसी स्थितियाँ तेजी से बढ़ रही हैं।

ऐसे में यदि हम अपने घरों और विद्यालयों में योग, ध्यान और भारतीय जीवनमूल्यों को पुनः स्थान दें, तो बच्चे मानसिक रूप से अधिक स्थिर, आत्मविश्वासी और संतुलित बन सकते हैं।
स्वामी जी ने कहा कि प्राचीन काल से ही भारत ने चेतना को विज्ञान का मूल विषय माना। मन, बुद्धि, चित्त, आत्मा ये सब न केवल आध्यात्मिक शब्द हैं, बल्कि गहरे मनोवैज्ञानिक और न्यूरोसाइंटिफिक अर्थ रखते हैं। आज जब पश्चिम भी भारतीय योग, ध्यान और प्रार्थना की ओर लौट रहा है, तो यह प्रमाण है कि सनातन संस्कृति की प्रासंगिकता केवल भूतकाल तक सीमित नहीं, बल्कि वह भविष्य का भी समाधान है।
स्वामी जी ने कहा कि मस्तिष्क यदि शांत है तो जीवन संतुलित है और जीवन संतुलित है तो संसार भी सुंदर है। ध्यान, प्रार्थना, सेवा और संयम ये मस्तिष्क की सर्वोत्तम औषधियाँ हैं। सनातन संस्कृति हमें केवल पूजन नहीं, एक दिव्य जीवन दृष्टि प्रदान करती है जिसमें स्वास्थ्य, साधना और सेवा तीनों का संतुलन होता है। मस्तिष्क की रक्षा औषधियों से नहीं, बल्कि जागरूकता, संयम और अध्यात्म से होती है और यही संतुलन हमें हमारी सनातन संस्कृति सिखाती है।